परहित सेवा से बढ़ कर निज स्वार्थ नहीं हो सकता है, दुर्बल पर प्रतिघात कभी पुरुषार्थ नहीं हो सकता।
अगर स्वयं श्री कृष्ण सारथी रथ के बन जाएँ मित्रों-धर्मयुद्ध में कभी पराजित पार्थ नहीं हो सकता है ॥
माया सगी न तन सग्यौ सग्यौ न यह संसार। परशुराम या जीव कौ सग्यौ है सृजनहार ॥
भक्तोदय ट्रस्ट के संस्थापक वैष्णवाचार्य श्री धर्मेन्द्र वत्स जी, श्री हरि की भक्ति में अपने बाल्यकाल से ही रम गए थे। इनके दादाजी श्री बाबूराम वत्स जी ने कहानियों और पूजा आरतियो के माध्यम से गुरूजी को श्री कृष्ण जी से परिचित करवाया। गुरूजी उनको बेहद रूचि से सुना करते थे और उन सब कथाओ से बेहद प्रभावित भी हुए। छह वर्ष की ही आयु में, गुरुजी प्राचीन गुरु शिष्य प्रणाली पर आधारित वैदिक गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति हेतु चले गए थे । गुरुकुल में ही गुरूजी ने अपने विद्वान शिक्षकों से भारतीय सभ्यता एवं वेदो के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त किया।
Read More ....Gurur Brahmaa Gurur Vishnu Gurur Devo Maheshwarah Guru Saakshaata Parabrahma Tasmai Shri Guruve Namah.गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णू गुरुः देवो महेश्वरा गुरु शाक्षात परब्रम्हा तस्मै श्री गुरुवे नमः