(कालसर्प योग एक जीवन रोग की तरह है अच्छा भी बुरा भी )
अनेक शास्त्रों में कालसर्प के बारे में अनेक विचार प्रस्तुत हैं जिसमें सभी यह मानते हैं कि राहु एवं केतु के मध्य सभी ग्रह आजाएं तो कालसर्प योग का उदय होता है। हम संसार में आते हैं एवं अनेक प्रकार के कर्म करते हैं और श्री रामचरित मानस में पूज्य गोस्वामी जी वर्णन करते हैं,
कर्म प्रधान विश्व करि राखा जे जस करहिं ते तस फल चाखा ।
इस संसार में आकर जो जैसा कर्म करता है उसको उसी तरह का परिणाम भोगना पड़ता है, और विषय वासनाओं में लिप्त हुआ जीव काम क्रोध लोभ, मोह, मद अहंकार में फस जाता है इसी कारण जीव को सर्प योनि में आना पड़ता है या कुण्डली में कालसर्प योग का जन्म होता है, जिसके कारण संपूर्ण जीवन अस्त व्यस्त हो जाता है,
कुण्डली में राहु एवं केतु के मध्य सूर्यादि सातों गृह आजाने से कालसर्प योग का निर्माण होता है, यदि राहु आगे या केतु पीछे या सातों गृह राहु केतु के मध्य फसे हों तो भी कालसर्प बन जाता है, कालसर्प योग दुर्भाग्य को उत्पन्न करने वाला माना जाना अनुचित नहीं है, कालसर्प योग वाले व्यक्ति के जीवन में विसंगति और जीवन पर्यन्त संघर्ष करना पड़ता है ज्योतिष में इस योग को अशुभ माना गया है, किन्तु यह योग शुभ फल का प्रदाता भी बन जाता है,
ज्योतिष शास्त्र में राहु को काल एवं केतु को सर्प माना गया है राहु को सर्प का मुख एवं केतु को सर्प की पूँछ कहा गया है वैदिक ज्योतिष के अनुसार राहु एवं केतु को छाया ग्रह की संज्ञा दी गई है राहु का जन्म भरणी नक्षत्र में एवं केतु का जन्म अश्लेषा नक्षत्र में हुआ है जिसके देवता काल और सूर्य हैं. राहु के स्वरूप को शनि और केतु को मंगल ग्रह का स्वरुप बताया गया है, राहु मिथुन राशि में उच्च एवं धनु राशि में नीच का होता है, राहु के नक्षत्र आर्द्रा स्वाति एवं शतभिषा हैं
राहु - प्रथम द्वितीय चतुर्थ, पंचम, सप्तम अष्टम नवम्, द्वादश भावों में किसी भी राशि का विशेषता नीच का बैठा हो तो निश्चित ही आर्थिक, मानसिक भौतिक, पारिवारिक, वेदना अपनी महादशा और अंतर्दशा में देता है, कर्मों के आधार पर यह दुष्कर्मों का दोष फलीभूत होता है. जैसे किसी सर्प की हत्या कर देना, भ्रूण हत्या कर देना या करवा देना परिवार में अकाल मृत्यु हो जाना इत्यादि, मानव को जन्म के बाद भी इसका प्रत्यक्ष आभास होता है ।
जैसे - सूर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण में जन्म होना, जीवन में अनेक परेशानियों का सामना करते रहना, नौकरी इत्यादि में असफल होना विवाह में देरी होना, विवाह हो भी गया तो या तो संतान ना होना या तलाक हो जाना या पति पत्नी में मतभेद रहना संतान हो भी जाए तो अपंग या दूर्बुद्धि या बीमार रहना, इत्यादि अनेक कारण कालसर्प योग को स्पष्ट करने के हैं, शारीरिक, मानसिक, तथा आर्थिक परेशानी कालसर्प योग होने से बनी रहती है, मनुष्य नाना प्रकार की पीड़ाओं से पीड़ित रहता है. परिजनों से विरोध का सामना करना एवं मुकदमे इत्यादि भी कालसर्प योग होने के लक्षण बताये गये हैं। पित्रदोष भी एक प्रकार से कालसर्प योग को ही कहते हैं, इसका समाधान वैदिक विधि से कराया जाना ही उचित होगा,,
कालसर्प योग 12 प्रकार का होता है =
1- अनन्त कालसर्प योग
2- कुलिक कालसर्प योग
3- वासुकि कालसर्प योग
4- शंखपाल कालसर्प योग
5- पद्म कालसर्प योग
6- महापद्म कालसर्प योग
7- तक्षक कालसर्प योग
8- कर्कोटक कालसर्प योग
9- शंखचूर्ण कालसर्प योग
10- पातक कालसर्प योग
11- विषाक्त कालसर्प योग
12- शेषनाग कालसर्प योग
कालसर्प योग शुभ फल भी देता है, कुण्डली में कुछ महत्वपूर्ण योगों से कालसर्प योग का खंडन हो जाता है, जैसे केन्द्र में स्वग्रही या उच्च का गुरु, शुक्र, शनि मंगल, चन्द्र इनमें से कोई भी ग्रह स्वग्रही या उच्च का होने पर कालसर्प योग का खंडन हो जाता है, ज्योतिष शास्त्र की मान्यता है कि 3,6,11 भावों में पाप ग्रह की उपस्थिति शुभ फल देने वाली होती है.
( कालसर्प योग का वैदिक उपाय )
अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में
कालसर्प योग या पित्रदोष है तो वह किसी अच्छे वैदिक विद्वान ( वेद के जानकार ) ब्राह्मण से ही इसका उपाय कराएं जिसको इसकी वैदिक विधि का पूर्ण रूप से ज्ञान हो इसे किसी नदी गंगा यमुना के किनारे पर कराना श्रेष्ट होगा, अन्यथा किसी प्राचीन शिवालय में भी कराया जा सकता है, स्थान के अभाव में इसे अपने किसी शुद्ध स्थान में भी कराया जा सकता है, अमावस्या, चतुर्दशी, नाग पंचमी,, श्राद्ध में कराना श्रेयस्कर होगा,
*पान्चिक श्राद्ध, नाग बलि, रूद्राभिषेक, तर्पण, राहु एवं केतु से संबंधित वस्तुओं का दान, एवं वैदिक मंत्रों का जाप द्वारा कालसर्प योग का पूर्ण रूप से आप समन कर सकते हैं,।
(अधिक वैदिक ज्योतिष या अन्य सेवा के लिए आप सीधा सम्पर्क कर सकते हैं )
परम श्रद्धेय वैष्णवाचार्य श्री धर्मेन्द्र वत्स जी
अन्तर्राष्ट्रीय श्रीमद् भागवत कथा वाचक एवं वैदिक ज्योतिष,
वृन्दावन, मथुरा